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Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 14 :- अध्याय चौदह -“गुणत्रय विभाग योग”

 Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 14 :- अध्याय चौदह -गुणत्रय विभाग योग

Gita Chapter 14


इस अध्याय को गुणत्रय विभाग योग (Guṇtraya Vibhaga Yoga) के नाम से जाना जाता है इस अध्याय में तीनों गुणों से युक्त भक्त की प्रवृति को बताया गया है सत्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण के बारे में विस्तार से बताया गया है, साथ ही यह भी बताया गया है की मनुष्य इन तीनों गुणों से कैसे मुक्त हो सकता है

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चौदह- गुणत्रय विभाग योग (Gutraya Vibhaga Yoga)

    अध्याय चौदह श्लोक से तक

     श्रीभगवानुवाच
    परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम्
    यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः  

    भावार्थ :  भगवन श्रीकृष्णा बोले पुनः समस्त ज्ञानों में भी अतिउत्तम ज्ञान है, उसे कहूंगा जिसे जानकार समस्त मुनि इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हुए है

     इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः
    सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये व्यथन्ति  2 

    भावार्थ :   इस ज्ञान का आश्रय लेकर, मेरे स्वरुप को प्राप्त हुए व्यक्ति सृष्टि के आदि में पुनः उत्पन्न नहीं होते है  और मैं और प्रयकाल में  भी विचलित नहीं होते है

     मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्
    सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत 3

    भावार्थ :  हे अर्जुन ! मेरी महद्ब्रह्म मतलब मूल प्रकृति सम्पूर्ण जीवों की योनि है और मैं उस योनि में चेतन समुदाय रूप बीज को स्थापित जीवों की उत्पत्ति होती है

    Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 14 

     सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः
    तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता  4  

    भावार्थ : हे कुंतीपुत्र ! सभी योनियों में जितने  शरीर उत्पन्न होते है , प्रकृति उन सबकी गर्भधारण करने वाला पिता हूँ

     Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता

     सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः
    निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्  5  

    भावार्थ :  हे महाबाहु अर्जुन ! प्रकृति से उत्पन्न सत्वगुण , रजोगुण और तमोगुण , इस अविनाशी जीवात्मा को  शरीर में बाँधते है।

    अध्याय चौदह श्लोक से १० तक

     तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्
    सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ  6  

    भावार्थ :  हे निष्पाप ! इन तीनों गुणों  में सत्वगुण तो शुद्ध होने के कारण प्रकाश करने वाला है और सभी पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है जिसमें यह गुण अधिक होता है वह सुख तथा ज्ञान के अभिमान से बांध जाता  है

     रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्
    तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् 7  

    भावार्थ :  हे कुन्तीपुत्र ! कामना तथा आसक्ति रजोगुण से उत्पन्न होता है ,ऐसा जानों जिसके  कारण जीवात्मा कर्मों  और उनके फल से बंधता है

    Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 14 

     तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्
    प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत   8

    भावार्थ :  हे अर्जुन ! अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारियों का मोह है   वह इस जीवात्मा को प्रमाद ,आलस्य और निद्रा से बंधता है

     सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत
    ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत 9

    भावार्थ :  हे कुन्तीपुत्र ! सत्वगुण सुख से बंधता है और रजोगुण कर्म से बाँधता है तथा तमोगुण तो ज्ञान को ढ़ककर प्रमाद से बाँधता है

     Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता

     रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत
    रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा 10

    भावार्थ :  हे अर्जुन ! रजोगुण और तमोगुण को कर करके सत्वगुण बढ़ता है इसी प्रकार सत्वगुण और तमोगुण को काम करके रजोगुण बढ़ता है  तथा सत्वगुण और रजोगुण को काम करके तमोगुण बढ़ता है

    अध्याय चौदह श्लोक ११ से १५ तक

     सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते
    ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत 11

    भावार्थ :  जिस समय इस शरीर , अंतःकरण और इन्द्रियों में दैवीय प्रकाश और विवेकशक्ति उत्पन्न होता है उस समय समझना चाहिए सत्वगुण में वृद्धि हुई है

     लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा
    रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ 12

    भावार्थ :  हे अर्जुन ! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ,कार्यों में प्रवृति होने की इच्छा , सकाम कर्म , अशांति और विषयभोगों में आसक्ति बढ़ जाती है

     अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव
    तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन 13

    भावार्थ :  हे अर्जुन ! तमोगुण के बढ़ने पर इन्द्रियों में अप्रकाश , करने योग्य कर्मों में निष्क्रियता , व्यर्थ चिंतन , आलस्य , निद्रा और संसार को मोहने वाली प्रवृतियाँ उत्पन्न होती है

     Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता

     यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्
    तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते 14

    भावार्थ :  जब कोई सत्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है , तब वह उत्तमकर्म करने वाले दिव्य लोकों को प्राप्त होता है

    रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते
    तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते  15  

    भावार्थ :  जब कोई रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होता है तब वह कर्मों में आसक्ति वाले व्यक्तियों में जन्म लेता है और जब कोई तमोगुण के वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है तब वह पशु योनि को प्राप्त होता है

    अध्याय चौदह श्लोक १६ से २० तक

     कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्
    रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्  16  

    भावार्थ :  सात्विक कर्म का फल शुद्ध ,सुख  , ज्ञान, निर्मल और वैराग्यादि कहा है , वहीं राजस का फल दुःख तथा तामस का फल अज्ञान है

     सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव
    प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव  17

    भावार्थ :  सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है , रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है तथा तमोगुण से प्रमाद ,मोह और आलस्य उत्पन्न होता है

     Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता

     ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः
    जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः 18  

    भावार्थ :  सत्वगुण में स्थित व्यक्ति स्वर्ग तथा उच्च लोकों में जाता है ; रजोगुण में स्थित व्यक्ति पृथ्वीलोकों में जाता है और तमोगुण में स्थित व्यक्ति अधोगति यानि नीच योनियों को तथा नरकादि को प्राप्त होता है

     नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति
    गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति 19  

    भावार्थ :  जिस काल में व्यक्ति तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को करता नहीं देखता और तीनों गुणों से प्रे मुझ परमात्मा को तत्वज्ञान द्वारा जनता है , उस समय वह मेरे स्वरुप को प्राप्त होता है

     गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्
    जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते 20  

    भावार्थ :  जब देहधारी जीव शरीर में उत्पन्न तीनों गुणों को लाँघने में समर्थ होता है , तब वह जन्म ,मृत्यु ,बुढ़ापा और सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है  और इसी जन्म में अमृत का पान करता है

    अध्याय चौदह श्लोक २१ से तक

     अर्जुन उवाच
    कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो
    किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते 21

    भावार्थ :  अर्जुन बोले इन तीनों गुणों से मुक्त हुआ व्यक्ति का क्या लक्षण होता है ? और वह किस प्रकार के आचरण वाला होता है तथा व्यक्ति कैसे इन तीनों गुणों से मुक्त हो सकता है

     श्रीभगवानुवाच
    प्रकाशं प्रवृत्तिं मोहमेव पाण्डव
    द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि निवृत्तानि काङ्क्षति   22

    भावार्थ :  भगवान श्रीकृष्ण बोले हे अर्जुन ! जो व्यक्ति सत्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह; इन सब में प्रवृत होने पर उनसे द्वेष करता है और इनसे निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है

     उदासीनवदासीनो गुणैर्यो विचाल्यते
    गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते   23

    भावार्थ :  जो निरपेक्ष की भाँति स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता है और गुण ही गुणों में बरतता है ऐसा जानता हुआ जो निरंतर परमात्मा में स्थित रहता है और उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता है

     समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः
    तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः 24

    भावार्थ :  जो निरंतर अपने आप में स्थित है ,सुख और दुःख में सम है, मिट्टी ,पत्थर और स्वर्ण को भी समान दृष्टि से देखता है , ज्ञानी, प्रिय तथा अप्रिय को समान समझता है , अपनी निंदा तथा स्तुति में सम भाव वाला है

     मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः
    सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते 25

     Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता

    भावार्थ :  जो मान तथा अपमान में सम है, जो मित्र तथा शत्रु से समान व्यवहार करता है , जो समस्त भौतिक कार्यों का परित्याग कर दिया है ऐसा व्यक्ति गुणातीत कहा जाता है

     मां योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते
    गुणान्समतीत्येतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते  26 

    भावार्थ :  और जो व्यक्ति अव्यभिचारिणी भक्ति के द्वारा मुझे निरंतर भजता है , वह इन तीनों गुणों को अच्छी प्रकार लांघकर परब्रह्म के साथ एक होने के योग्य बन जाता है

     ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य
    शाश्वतस्य धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य 27

    भावार्थ :  क्योंकि मैं ही उस अविनाशी परब्रह्म का , अमृत का ,शाश्वत- धर्म का ,अखण्ड एकरस आनंद का ,आश्रय हूँ


    श्रीमद्भगवद्‌गीता के अन्य सभी अध्याय :-

    1. Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 1 (Visada Yoga)| विषाद योग
    2. Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 2 (Sankhya-Yoga)|संख्यायोग
    3. Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 3 (Karmayoga)। कर्मयोग
    4. Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 4 (Gyan Karma Sanyas Yoga)|ज्ञान कर्म सन्यास योग
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    6. Shrimad Bhagwat Geeta Chapter 6 (Aatmsanyam Yoga) |आत्मसंयम योग

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