प्रस्तावना: प्रेम की परिभाषा और एक अनसुलझा प्रश्न
जब भी प्रेम की बात होती है, जुबां पर सबसे पहला नाम 'राधा-कृष्ण' का ही आता है। यह नाम केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि 'जीवात्मा' और 'परमात्मा' के मिलन का प्रतीक है।
हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि राधा और कृष्ण का प्रेम अधूरा रह गया था। दुनिया कहती है कि रुक्मिणी श्री कृष्ण की पत्नी थीं, लेकिन राधा उनकी आत्मा थीं।
परन्तु, क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में एक ऐसी गुप्त घटना का वर्णन है, जो यह सिद्ध करती है कि सामाजिक रूप से अलग होने से बहुत पहले, राधा और कृष्ण का एक गांधर्व विवाह हुआ था?
आज के इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको ब्रज के उस रहस्यमयी वन की यात्रा पर ले चलेंगे जहाँ स्वयं ब्रह्मा जी ने राधा और कृष्ण का विवाह करवाया था।
साथ ही, हम उस श्राप के बारे में भी जानेंगे जिसके कारण इस विवाह के बावजूद उन्हें धरती पर एक-दूसरे से बिछड़ना पड़ा। यह कहानी न केवल रोचक है, बल्कि आपके भक्ति भाव को एक नई गहराई देगी।
भाग 1: वह प्रचलित धारणा जो हम सब जानते हैं
आम तौर पर टीवी धारावाहिकों और लोक कथाओं में हम देखते हैं कि कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले जाते हैं, कंस का वध करते हैं और फिर बाद में रुक्मिणी और सत्यभामा से विवाह करते हैं।
राधा रानी का उल्लेख अक्सर वृंदावन छूटने के बाद कम हो जाता है।
भक्त अक्सर यह प्रश्न पूछते हैं: "अगर कृष्ण भगवान थे और राधा उनकी शक्ति, तो उन्होंने विवाह क्यों नहीं किया?"
इसका एक दार्शनिक उत्तर तो यह दिया जाता है कि विवाह के लिए 'दो' लोगों की आवश्यकता होती है, और राधा-कृष्ण तो 'एक' ही हैं।
लेकिन, गर्ग संहिता (Garga Samhita), जिसे गर्ग मुनि (यदुवंश के कुलगुरु) ने लिखा था, इसमें एक अत्यंत दुर्लभ और अद्भुत प्रसंग मिलता है जो इस पूरी धारणा को बदल देता है।
भाग 2: भांडीरवन का रहस्य (जहाँ समय थम गया था)
वृंदावन से कुछ दूरी पर स्थित है एक अति पवित्र वन, जिसे 'भांडीरवन' कहा जाता है।
यह वही स्थान है जहाँ बाल-कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेला करते थे।
लेकिन इसी वन में एक ऐसी घटना घटी थी जिसे देवताओं ने अपनी आँखों से देखा, लेकिन पृथ्वीवासी इससे अनजान रहे।
गर्ग संहिता के अनुसार कथा:
यह उस समय की बात है जब श्री कृष्ण नन्हे बालक थे। एक दिन नंद बाबा, श्री कृष्ण को अपनी गोद में लेकर गाय चराने के लिए भांडीरवन गए हुए थे।
अचानक, मौसम ने करवट बदली। देखते ही देखते आकाश में काले मेघ घिर आए, तेज आंधियां चलने लगीं और बिजलियां कड़कने लगीं। पूरा वन अंधकारमय हो गया।
नंद बाबा, जो कृष्ण को एक साधारण अबोध बालक मानते थे, भयभीत हो गए।
उन्हें लगा कि नन्हा कान्हा कहीं इस तूफ़ान में डर न जाए। तभी, उनकी गोद में बैठे नन्हे कृष्ण ने अपनी माया का विस्तार किया।
अचानक, वह नन्हा बालक नंद बाबा की गोद से उतर गया और देखते ही देखते एक किशोर (युवा) अवस्था में प्रकट हो गया।
उनका रूप अत्यंत दिव्य था—मोर मुकुट, पीतांबर धारी, और उनके शरीर से करोड़ों सूर्यों का तेज निकल रहा था।
उसी क्षण, वहां एक दिव्य प्रकाश हुआ और श्री राधा रानी वहां प्रकट हुईं।
यह कोई साधारण मिलन नहीं था।
भाग 3: ब्रह्मा जी द्वारा विवाह का अनुष्ठान
उस समय भांडीरवन का वातावरण बदल गया। तूफ़ान थम गया, और वसंत ऋतु जैसा सुहावना मौसम हो गया। तभी सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी वहां प्रकट हुए। उन्होंने वेद मंत्रों का उच्चारण शुरू किया।
गर्ग संहिता में वर्णन आता है कि ब्रह्मा जी ने स्वयं पुरोहित की भूमिका निभाई। उन्होंने अग्नि प्रज्वलित की और राधा व कृष्ण का 'गांधर्व विवाह' संपन्न कराया।
राधा जी ने कृष्ण को वरमाला पहनाई।
कृष्ण ने राधा जी को वचनों के साथ स्वीकार किया।
देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की।
उस क्षण के लिए, भांडीरवन पृथ्वी का हिस्सा नहीं, बल्कि साक्षात 'गोलोक धाम' बन गया था।
विवाह संपन्न होने के बाद, ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए। राधा रानी भी अंतर्ध्यान हो गईं और श्री कृष्ण पुनः एक नन्हे बालक का रूप लेकर नंद बाबा के पास पहुँच गए, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।
नंद बाबा को लगा कि यह सब शायद उनका भ्रम था या कोई स्वप्न।
प्रश्न यह उठता है: यदि उनका विवाह हो चुका था, तो फिर दुनिया की नजरों में वे अलग क्यों हुए? उन्हें विरह की अग्नि में क्यों जलना पड़ा?
इसका उत्तर छिपा है एक श्राप में, जो उन्हें धरती पर जन्म लेने से पहले ही मिल चुका था।
भाग 4: श्रीदामा का क्रोध और 100 वर्ष के विरह का श्राप
यह कहानी हमें पृथ्वी से दूर, दिव्य गोलोक धाम (भगवान का नित्य निवास) में ले जाती है।
राधा और कृष्ण के पृथ्वी पर अवतरित होने से पहले की यह घटना है। गोलोक में श्री कृष्ण के एक परम भक्त और सखा थे, जिनका नाम था श्रीदामा।
श्रीदामा कृष्ण से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन उन्हें राधा रानी का कृष्ण पर जो अधिकार था, वह कभी-कभी खटकता था।
उन्हें लगता था कि कृष्ण, राधा के प्रेम में इतने वशीभूत हो जाते हैं कि वे अपनी स्वतंत्र सत्ता भूल जाते हैं।
एक बार की बात है, श्री कृष्ण विरजा नदी के तट पर अकेले बैठे थे। राधा रानी को जब यह पता चला, तो वे मान (प्रेम युक्त क्रोध) में आ गईं और उन्होंने कृष्ण से मिलने से मना कर दिया।
श्रीदामा को यह बात सहन नहीं हुई कि कोई उनके आराध्य प्रभु से रूठने का साहस कैसे कर सकता है।
श्रीदामा सीधे राधा रानी के पास गए और उनसे ऊँची आवाज़ में बात करने लगे। उन्होंने राधा रानी के प्रेम और उनके अधिकार को चुनौती दी।
राधा रानी का उत्तर: राधा रानी, जो स्वयं शक्ति स्वरूपा हैं, ने श्रीदामा को समझाया कि प्रेम में अधिकार नहीं, समर्पण होता है।
लेकिन श्रीदामा क्रोध में विवेक खो बैठे थे। उन्होंने राधा रानी को श्राप दे दिया।
श्राप के शब्द: श्रीदामा ने कहा, "हे राधे! आपको अपने मान और प्रभुता का बहुत अहंकार है।
इसलिए मैं आपको श्राप देता हूँ कि आपको गोलोक से गिरकर 'मृत्युलोक' (पृथ्वी) पर जाना पड़ेगा। वहां आप एक ग्वालन के घर जन्म लेंगी। और जिस कृष्ण के प्रेम का आपको इतना अभिमान है, उस कृष्ण से आपका 100 वर्षों तक वियोग (अलगाव) रहेगा।"
यह श्राप सुनकर पूरा गोलोक स्तब्ध रह गया।
भाग 5: श्राप की स्वीकृति और धरती पर अवतार
श्रीदामा के श्राप को सुनकर राधा रानी विचलित नहीं हुईं। उन्होंने शांत भाव से इसे स्वीकार किया। तभी श्री कृष्ण वहां आए।
श्रीदामा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे कृष्ण के चरणों में गिरकर रोने लगे।
लेकिन, कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, "श्रीदामा, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। यह सब मेरी ही इच्छा से हुआ है। पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए मुझे अवतार लेना है, और मेरी शक्ति (राधा) के बिना मैं वहां क्या करूँगा? लेकिन पृथ्वी पर लीला करने के लिए 'विरह' का रस भी आवश्यक है।"
इस प्रकार, उस श्राप के फलस्वरुप:
जन्म: राधा रानी ने कीर्ति मैया और वृषभानु जी के घर जन्म लिया (लेकिन वे अयोनिजा थीं, उनका जन्म गर्भ से नहीं हुआ था)।
विवाह: भांडीरवन में उनका गुप्त विवाह हुआ ताकि वे आध्यात्मिक रूप से सदैव एक रहें।
विरह: सामाजिक रूप से, अयन घोष (जिन्हें जटिला-कुटिला का भाई माना जाता है और जो श्रीदामा का ही अंशावतार थे) से राधा का विवाह (छाया रूप में) हुआ और कृष्ण मथुरा चले गए।
इस तरह 100 वर्षों तक राधा और कृष्ण शारीरिक रूप से अलग रहे।
भाग 6: कुरुक्षेत्र में पुनर्मिलन - श्राप की समाप्ति
बहुत कम लोग जानते हैं कि वृंदावन छोड़ने के बाद कृष्ण और राधा की मुलाकात कुरुक्षेत्र में हुई थी।
जब सूर्य ग्रहण का समय था, तब पूरे भारतवर्ष से लोग कुरुक्षेत्र में स्नान करने आए थे।
द्वारका से श्री कृष्ण अपनी रानियों (रुक्मिणी, सत्यभामा आदि) के साथ आए थे।
और वृंदावन से नंद बाबा, यशोदा मैया और राधा रानी भी वहां आई थीं।
यही वह समय था जब 100 वर्ष का श्राप समाप्त हुआ था।
वहां रुक्मिणी जी ने पहली बार राधा रानी को देखा। रुक्मिणी जी ने राधा जी की सेवा की और उन्हें गर्म दूध दिया।
कहते हैं कि वह दूध बहुत गर्म था, जिसे पीकर राधा जी को तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन श्री कृष्ण के चरणों में छाले पड़ गए।
यह देखकर रुक्मिणी जी समझ गईं कि राधा और कृष्ण दो शरीर हैं, लेकिन प्राण एक ही हैं।
राधा के हृदय की तपन सीधे कृष्ण के शरीर पर प्रभाव डालती है।
निष्कर्ष: इस कहानी का हमारे जीवन में महत्व
राधा-कृष्ण की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम केवल प्राप्ति में नहीं है।
आज के युग में हम प्रेम को केवल साथ रहने या विवाह करने तक सीमित कर देते हैं।
लेकिन राधा-कृष्ण ने 'विप्रलंभ भाव' (विरह में प्रेम) का उदाहरण प्रस्तुत किया।
भांडीरवन का विवाह यह बताता है कि परमात्मा के स्तर पर वे सदा एक हैं। कोई भी सामाजिक बंधन या दूरी उन्हें अलग नहीं कर सकती।
श्रीदामा का श्राप यह बताता है कि जीवन में आने वाले कष्ट या दूरियां भी ईश्वर की किसी बड़ी योजना का हिस्सा होती हैं।
तो अगली बार जब कोई आपसे कहे कि "राधा और कृष्ण का विवाह नहीं हुआ था", तो आप उन्हें भांडीरवन और गर्ग संहिता की यह अद्भुत कथा अवश्य सुनाएं।
उनका विवाह हुआ था, लेकिन वह विवाह दुनिया को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि आत्मा का परमात्मा से गठबंधन था।
लेखक का नोट: यदि आप कभी वृंदावन जाएं, तो 'भांडीरवन' अवश्य जाएं। वहां आज भी वह प्राचीन वट वृक्ष मौजूद है जिसके नीचे ब्रह्मा जी ने यह विवाह संपन्न कराया था।
वहां की शांति में आप आज भी उस दिव्य प्रेम को महसूस कर सकते हैं।
आपके लिए एक प्रश्न:
क्या आपको लगता है कि सच्चा प्रेम विरह (जुदाई) में ही सबसे अधिक निखरता है? अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
जय श्री राधे-कृष्ण!






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