माखन चोर, गोवर्धनधारी और अर्जुन के सारथी कृष्ण को तो सब जानते हैं, लेकिन क्या आप उन दुर्लभ लीलाओं से परिचित हैं, जहाँ उन्होंने एक भक्त को परम गति दी, अपनी सोलह हजार पत्नियों के पीछे की महान करुणा दिखाई, और गरुड़ के अहंकार को तोड़ा?
प्रस्तावना: वह कृष्ण जो 'संपूर्ण अवतार' हैं
हम सबने भगवान श्री कृष्ण को कई रूपों में देखा है – वृन्दावन में बाँसुरी बजाने वाले नटखट कान्हा के रूप में, कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता का उपदेश देने वाले योगेश्वर के रूप में, और द्वारका के सम्राट द्वारकाधीश के रूप में। उनकी हर लीला एक अमूल्य शिक्षा है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार, श्री कृष्ण ही एकमात्र ऐसे 'संपूर्ण अवतार' हैं, जो सोलह कलाओं से युक्त थे?
इन सोलह कलाओं में केवल पराक्रम और ज्ञान ही नहीं, बल्कि अद्भुत करुणा, सूक्ष्म प्रबंधन और परम प्रेम भी शामिल है।
उनके जीवन के कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जो आम कथाओं के बीच दब से गए हैं।
ये कहानियाँ केवल चमत्कार नहीं हैं, बल्कि ये हमें बताती हैं कि साधारण जीवन में भी धर्म, प्रेम और ज्ञान को कैसे साधा जा सकता है।
आज, हम उन तीन अनसुनी कहानियों पर प्रकाश डालेंगे, जो श्री कृष्ण की दिव्यता और उनके मानव हृदय की गहराई को दर्शाती हैं:
1. भक्त के लिए ‘कष्ट निवारण’ - दुर्वासा ऋषि का वरदान और कृष्ण की पीड़ा (The Headache of Krishna)
कहानी का प्रसंग:
जब हम कृष्ण की बात करते हैं, तो अक्सर उनके दिव्य और दोषरहित स्वरूप की कल्पना करते हैं, लेकिन एक कहानी उनकी मानवीय संवेदना और भक्त-प्रेम को असाधारण रूप से प्रकट करती है।
यह घटना द्वारका की है, जब कृष्ण अपनी पटरानी सत्यभामा के साथ भोजन कर रहे थे।
भोजन के दौरान, कृष्ण अचानक अपनी सीट से उठ खड़े हुए और दर्द से कराहते हुए दौड़ने लगे।
सत्यभामा घबरा गईं और पूछा, "हे नाथ, आपको क्या हुआ? क्या कोई शत्रु आ गया?"
कृष्ण ने कहा, "सत्यभामा, मेरे सिर में असहनीय पीड़ा हो रही है। ऐसा लगता है जैसे मेरा सिर फट जाएगा। मुझे तत्काल किसी औषधि की आवश्यकता है।"
यह सुनकर सत्यभामा, जो कृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती थीं, तुरंत दरबार के वैद्य और औषधियाँ लाईं।
लेकिन किसी भी औषधि से कृष्ण की पीड़ा शांत नहीं हुई। तभी, कृष्ण ने उन्हें एक असामान्य उपाय बताया।
उन्होंने कहा, "मेरी पीड़ा को केवल एक ही चीज़ शांत कर सकती है: किसी परम भक्त के चरणों की धूल, जिसे वह भक्ति और प्रेम से मेरे माथे पर लगाए।"
सत्यभामा का निर्णय:
सत्यभामा ने सोचा, "मैं स्वयं कृष्ण की पटरानी हूँ, सबसे प्रिय हूँ। यदि मैं अपने चरणों की धूल उनके सिर पर लगाऊँगी, तो मुझे घोर पाप लगेगा और नरक जाना पड़ेगा।
मैं अपने पति को कष्ट में देख सकती हूँ, पर उन्हें पाप नहीं दे सकती।" अपने अहंकार और नरक के डर के कारण, सत्यभामा ने अपने चरणों की धूल देने से इनकार कर दिया।
रुक्मिणी का परम प्रेम:
यह बात जब कृष्ण की एक अन्य पटरानी, रुक्मिणी तक पहुँची, तो वह बिना एक पल भी सोचे, कृष्ण के कक्ष में आईं।
उन्होंने देखा कि कृष्ण पीड़ा में हैं। बिना किसी प्रश्न या संकोच के, उन्होंने अपनी आँखों में आँसू लिए, अपने चरणों की थोड़ी-सी धूल ली और उसे कृष्ण के माथे पर लगा दिया।
चमत्कार: चरणों की धूल लगाते ही कृष्ण का सिर दर्द क्षण भर में शांत हो गया।
गूढ़ रहस्य और शिक्षा:
सत्यभामा ने नरक जाने के डर से कर्म का विचार किया, जबकि रुक्मिणी ने प्रेम और भक्ति को सर्वोपरि रखा।
कृष्ण ने तुरंत रुक्मिणी को अपने निकट बुलाकर कहा, "हे रुक्मिणी, तुमने मुझे नरक के भय से मुक्त किया है। यह कहानी हमें सिखाती है कि:
कर्म से बड़ा प्रेम: भक्ति में भक्त के लिए अपने ईश्वर की पीड़ा को हरना, अपने व्यक्तिगत पाप-पुण्य के विचार से भी ऊपर होता है।
अहंकार का त्याग: सत्यभामा का संकोच उनके पटरानी होने के अहंकार से उपजा था। रुक्मिणी ने प्रेम में अपने अहंकार और यहाँ तक कि नरक के भय का भी त्याग कर दिया।
यह लीला प्रमाणित करती है कि भगवान के लिए परम भक्त का प्रेम ही सबसे बड़ी औषधि और सबसे शुद्ध वस्तु है।
2. नरकासुर की 16,100 पत्नियाँ - विवाह के पीछे की करुणा और सामाजिक क्रांति
कहानी का प्रसंग:
श्री कृष्ण की 16,108 पत्नियों का उल्लेख अक्सर एक रहस्य या अतिश्योक्ति के रूप में किया जाता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी कृष्ण की अद्वितीय करुणा और समाज-सुधार के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है।
प्रद्युम्न के पिता, नरकासुर नाम का एक अत्यंत क्रूर राक्षस था। उसने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था और अपनी शक्ति के नशे में 16,100 राजकुमारियों और महिलाओं का अपहरण करके उन्हें अपनी कैद में रखा था।
इन सभी महिलाओं को नरकासुर ने घोर अपमान और अत्याचार सहने पर मजबूर किया था।
इंद्रदेव ने नरकासुर के अत्याचारों से तंग आकर श्री कृष्ण से सहायता माँगी। तब कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर से भीषण युद्ध किया।
कृष्ण का महान निर्णय:
युद्ध में कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और 16,100 महिलाओं को उसकी कैद से मुक्त कराया।
जब वे मुक्त हुईं, तो उनके सामने एक भयंकर सामाजिक संकट खड़ा हो गया।
उस युग के रूढ़िवादी समाज ने अपहृत और बंदी बनाई गई महिलाओं को अशुद्ध मानकर अस्वीकार कर दिया।
उनके माता-पिता, पति, और समाज ने उन्हें वापस लेने से मना कर दिया।
इन बेसहारा महिलाओं का भविष्य अंधकारमय हो गया था। उनके सामने आत्महत्या या अपमानजनक जीवन जीने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था।
यह देखकर, करुणा के सागर कृष्ण ने एक असाधारण और क्रांतिकारी निर्णय लिया।
कृष्ण ने घोषणा की कि वे स्वयं उन सभी 16,100 महिलाओं से विवाह करेंगे और उन्हें अपनी पटरानियों का दर्जा देंगे।
गूढ़ रहस्य और शिक्षा:
यह विवाह कोई प्रेम-संबंध नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का एक महान कार्य था।
पुनर्वास और सम्मान: कृष्ण ने उन महिलाओं को केवल मुक्ति नहीं दी, बल्कि उन्हें ‘कृष्ण की पत्नी’ का सम्मान देकर समाज में सबसे उच्च स्थान प्रदान किया।
इस एक कदम से, उनका अपमान हमेशा के लिए धुल गया, और उन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार मिला।
सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार: यह कृष्ण का रूढ़िवादी सामाजिक सोच पर किया गया सबसे बड़ा प्रहार था।
उन्होंने सिद्ध किया कि किसी व्यक्ति की पवित्रता उसके चरित्र में होती है, न कि उस पर हुए बाहरी अत्याचारों के कारण।
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दिव्यता केवल चमत्कार करने में नहीं है, बल्कि शोषितों और तिरस्कृतों को समाज में सम्मान और स्थान दिलाने में है।
कृष्ण ने 16,100 दुखी आत्माओं को अपनाकर करुणा और धर्म का सबसे बड़ा उदाहरण पेश किया।
3. गरुड़ का दम्भ भंजन - कृष्ण, गरुड़ और एक छोटी-सी गिलहरी (The Lesson of the Squirrel)
कहानी का प्रसंग:
गरुड़ देव, जो भगवान विष्णु का वाहन हैं, अपनी अत्यधिक गति और शक्ति पर बहुत गर्व करते थे।
एक बार, कृष्ण ने उन्हें यह शिक्षा देने का निश्चय किया कि प्रेम और समर्पण ही सबसे बड़ी शक्ति है।
एक दिन, कृष्ण ने गरुड़ से कहा, "हे गरुड़, क्या तुम मुझ पर एक उपकार करोगे? इस समय वृन्दावन में मेरी प्रिय राधा मुझसे मिलने को व्याकुल हैं।
क्या तुम उन्हें एक पल में द्वारका ले आओगे? ध्यान रहे, उन्हें ज़रा भी कष्ट नहीं होना चाहिए।"
गरुड़ अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि कृष्ण ने उनकी गति की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा, "हे नाथ, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
मैं पलक झपकते ही राधा जी को आपके पास ले आऊँगा।"
गरुड़ तुरंत वृन्दावन की ओर अत्यंत तीव्र गति से उड़ चले। उनकी गति ऐसी थी कि हवा भी उनसे पीछे रह जाए।
चमत्कार और गरुड़ का दम्भ-भंजन:
जब गरुड़ वृन्दावन पहुँचे और राधा जी को लेकर तुरंत द्वारका लौटने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कृष्ण और राधा पहले से ही द्वारका में, उसी स्थान पर, प्रेमपूर्वक वार्तालाप कर रहे हैं!
गरुड़ हक्के-बक्के रह गए। उन्होंने सोचा, "मैं तीनों लोकों में सबसे तेज़ हूँ, लेकिन मैं राधा जी को लेकर आया भी नहीं, और वे पहले ही यहाँ कैसे पहुँच गईं?"
उसी समय, कृष्ण ने मुस्कुराते हुए गरुड़ की ओर देखा। गरुड़ समझ गए कि यह कृष्ण की कोई लीला है।
कृष्ण ने कहा, "हे गरुड़, तुमने आने में विलम्ब कर दिया। राधा तो मेरे हृदय में हर पल निवास करती हैं। उनका और मेरा प्रेम, तुम्हारी गति से भी अनेक गुना तेज़ है।"
दार्शनिक शिक्षा:
यह कहानी बताती है कि दिव्य शक्ति (गरुड़) और परम प्रेम (राधा) में कौन अधिक बलवान है।
भक्ति की श्रेष्ठता: गरुड़ की गति भौतिक थी, जो समय और दूरी पर निर्भर करती है। राधा का प्रेम आध्यात्मिक था, जो हर बंधन से परे है। कृष्ण ने सिद्ध किया कि उनके लिए सांसारिक शक्ति से बढ़कर अनन्य प्रेम और भक्ति का वेग है।
अहंकार पर विजय: कृष्ण ने गरुड़ के गति के अहंकार को बिना किसी बल प्रयोग के तोड़ दिया। यह सिखाता है कि हम चाहे कितने भी शक्तिशाली या ज्ञानी हों, ईश्वर की दृष्टि में सबसे बड़ा गुण विनम्रता और निस्वार्थ प्रेम है।
यह लीला हमें सिखाती है कि यदि हमारा ध्यान और प्रेम कृष्ण में पूर्ण रूप से लगा हो, तो हम किसी भी भौतिक बंधन से मुक्त होकर पल भर में ईश्वर तक पहुँच सकते हैं।
निष्कर्ष: लीला और जीवन का सार
भगवान श्री कृष्ण की ये अनसुनी कहानियाँ हमें यह समझाती हैं कि उनका अवतार केवल धर्म की स्थापना के लिए नहीं था, बल्कि प्रेम, करुणा और सामाजिक न्याय की शिक्षा देने के लिए था।
'कष्ट निवारण' की कहानी हमें सिखाती है कि प्रेम-भक्ति स्वयं को बचाने के अहंकार से ऊपर है।
'16,100 पत्नियों' की कहानी हमें सिखाती है कि करुणा सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली सबसे बड़ी शक्ति है।
'गरुड़ दम्भ भंजन' की कहानी हमें सिखाती है कि अहंकार से भरी शक्ति क्षणभंगुर है, जबकि अनन्य प्रेम शाश्वत है।
कृष्ण का जीवन हमें यह संदेश देता है कि हमें अपने जीवन में हर रिश्ते, हर चुनौती और हर सामाजिक स्थिति में इन गूढ़ कलाओं – प्रेम, करुणा और अनासक्ति – का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि योगेश्वर कृष्ण के अनुसार, यही धर्म है, और यही जीवन है।
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