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Complete Bhagavad Geeta in Hindi

 



श्रीमद्भगवद्‌गीता क्या है ? - What is Bhagavad Geeta?

श्रीमद्भगवद्‌गीता भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई परम रहस्यमय वाणी है । 

इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को निमित (माध्यम) बना कर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए उपदेश दिया है ।

महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने शत्रु सेना में अपने ही सम्बन्धी पितामह, भाई, भतीजों, मामा और गुरुजनो को देखा तो वह मोहग्रस्त हो भगवान से युद्ध ना करने का आग्रह करने लगा ।

तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया है वही श्री मदभगवदगीता के नाम से विख्यात है ।







    इस श्रीमद्भगवद्‌गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोकें हैं ।


    सर्वप्रथम हम यहाँ जानेंगे कि भगवद् गीता क्यों आवश्यक है ? और साथ ही हम यह भी जानेंगे की श्रीमद् भगवद् गीता को कैसे समझा जाए ?


    क्योंकि यहाँ परब्रह्म (भगवान श्री कृष्ण) जो कि इस सम्पूर्ण सृष्टि के उत्पति का मूल कारण है। वो परम तेजस्वी अर्जुन को यह परम ज्ञान दे रहें हैं । 


    यहाँ ज्ञान देने और ज्ञान ग्रहण करने वाले दोनों की परिकल्पना हम जैसे साधारण व्यक्तियों के लिए असंभव है ।


    इसका तात्पर्य कदापि यह नहीं है की गीता हम जैसे साधारण व्यक्तियों के लिए नहीं है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण हम जैसे अल्प बुद्धियों के कल्याण के लिए ही यह परम ज्ञान दिया है ।



    श्रीमद्भगवद्‌गीता के ही एक श्लोक के माध्यम से जानेंगे कि भगवद्गीता क्यों आवश्यक है -




    यदा यदा हि धर्मंसय गलानिर्भवति भारत।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।



    अर्थ: हे अर्जुन ! जब- जब धर्म की हानि होती है और अधर्म में वृद्धि, तब - तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ। तथा साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।



    श्रीमद्भगवद्‌गीता क्यों आवश्यक है ? - Why Bhagavad Geeta is necessary?



    भगवान श्रीहरि प्रत्येक युग में प्रकट लेते हैं। और अपने जीवन लीला में आने वाले युगों के कल्याण केलिए संदेश देते है।


    भगवान ने द्वापर युग में श्री कृष्णा अवतार लेकर कलयुग में उत्पन्न समस्याओं का समाधान दिया है । भगवान सृष्टि के उत्पन्न कर्ता है । 


    उन्हें ज्ञात था कि कलयुग में चारो तरप लोभ, मोह, हतासा निराशा रहेगा ।


    लोग अल्पायु, अल्पबुद्धि, धैर्यहीन, शक्तिहीन होंगे। कलयुग में व्यक्ति ध्यान, ज्ञान, योग तथा कर्म से विमुख होंगे ।


    व्यक्ति चंचल होंगे तथा उन्हें चंचल करने वाले साधन अनंत होंगे । व्यक्ति एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाएँगे ।


    गुरु - शिष्य से, पति - पत्नी से, प्रेमी - प्रेमिका से, पिता - पुत्र से असंतुस्ट रहेंगे। व्यक्ति व्यर्थ - चिन्तनं तथा दूसरे की निंदा में लिप्त रहेंगे।


    ऐसे अनेको कारण है जो कलयुग को भयावह बनाएगा।  उन सभी समस्याओं का समाधान भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता के माध्यम से दिया ।


    भगवद गीता के अध्यन से व्यक्ति कलयुग में उत्पन्न समस्याओं से मुक्त हो जाता है । और अपने जीवन काल में आनंद से लेकर परमानंद तक का सफर तय करता है ।



    भगवद गीता को कैसे समझा जाए ? - ( How to understand Bhagavad Geeta )



    भगवद्गीता को समझने के  लिए सबसे पहले अर्जुन के चरित्र चिंतन की आवश्यकता है। बिना अर्जुन के महात्मय को समझे गीता का रहस्य समझ पाना असंभव है ।


    अर्जुन के चरित्र -


    अर्जुन सदैव अभिमान से रहित तथा सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति थे। करुणा से युक्त अर्जुन मन, कर्म और वचन से किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं देते। तेज धैर्य, क्षमा तथा सहनशीलता उनका स्वभाविक गुण था।



    उनमें सभी प्राणियों के लिए दया तथा किसी के लिए भी शत्रु भाव का सर्वथा अभाव था। अपने अहित करने वालो पर भी क्रोध का ना होना उनके स्वभाव में ही था । 

    उन्हें निद्रा तथा इन्द्रियों पर विजय प्राप्त था। भगवान, देवता था गुरुजनो का पूजन करना उन्हें अत्यंत प्रिय था । 

    वह तत्व ज्ञान के लिए ध्यान योग में निरंतर दृढ संकल्पित रहते थे । वे निरंतर भगवान श्री कृष्ण के चिंतन में लीन रहते थे ।

     उपरोक्त गुणों में से कोई भी गुण यदि कसी व्यक्ति में हो तो वह कृष्ण भक्ति की ओर स्वतः आकृष्ट होता है। 

    साथ ही वह भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से वह उनके परम ज्ञान भगवद् गीता को समझने में सक्षम होता है।



    किस प्रकार क़े व्यक्ति भजते है भगवन श्री कृष्ण को ? - What kind of person worship Lord Krishna?


    भगवत गीता में भगवन श्री कृष्ण स्वयं अपने भक्तों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा है -





    चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
    आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।




    अर्थ - हे भरतवंशियों में सर्वश्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्मो को करने वाले आर्त, जिज्ञासु, अथार्थी और ज्ञानी ऐसे चार प्रकार के व्यक्ति मुझको भजते हैं ।



    यहाँ आर्त का अर्थ है - संकट मुक्ति के लिए भेजने वाले, जिज्ञासु - मुझ को वास्तिविक रूप से जानने की इच्छा वाले, 

    अथार्थी - सांसारिक पदार्थो को प्राप्त करने वाले एवं ज्ञानी - ज्ञानी व्यक्ति तो साक्षात् मेरे स्वरूप ही हैं; क्योंकि वह नित्य एकीभाव से मुझ में ही स्थित रहता है ।

    अब हम जानेंगे की भगवद्गीता में 18 अध्याय में कौन - कौन से है था उन अध्यायों में किन - किन बातों की चर्चा की गई है ।

    ये 18 अधयाय है -



    श्रीमद्भगवद्‌गीता के सभी अध्याय :-


    अध्याय प्रथम - "अर्जुन विषाद योग"


    प्रथम अध्याय को अर्जुन विषाद योग (visada Yoga) नाम से जाना जाता है ।  इसमें धैर्यवान अर्जुन दोनों पक्षों में उपस्थित सेनाओं का निरिक्षण करते है।


    निरिक्षण के उपरांत अपने ही स्वजन, सागा - सम्बन्धियों, गुरुजनो को देख कर अर्जुन मोह से ग्रस्त हो जाते है। 

    और भगवान श्रीकृष्ण से कहते है - हे गोविन्द मैं यह युद्ध नहीं करना चाहता हूँ ।

    द्वितीय अध्याय - "सांख्ययोग"


    द्वितीय अध्याय को संख्यायोग (Sankhya-Yoga)नाम से जाना जाता है ।

    इसमें मोहग्रस्त अर्जुन और भगवान् श्रीकृष्ण के बीच वार्तालाप होता है । 

    साथ ही संख्यायोग की चर्चा, कर्मयोग की चर्चा तथा क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता भगवान्  अर्जुन को बताते हैं ।


    स्थिरबुद्धि पुरुषों के कौन - कौन से लक्षण है और उनकी महिमा का वर्णन किया है ।



    तृतीय अध्याय - " कर्मयोग"


    इस अध्याय को कर्मयोग (Karma-Yoga) नाम से जाना जाता है ।

    इस अध्याय में भगवन श्री कृष्ण ने ज्ञानयोग एवं कर्मयोग के अनुरूप आसक्ति रहित भाव से नियत कर्म करने का वर्णन किया है ।

    यज्ञादि कर्मो की आवश्यकता का वर्णन किया गया है । साथ ही इस अध्याय में काम निरोध का वर्णन भी किया गया है ।


    अज्ञानी और ज्ञानी के लक्षण का वर्णन तथा राग - द्वेष से रहित होकर यथार्त कर्म करने की सलाह दी गई है ।


    चतुर्थ अध्याय - "ज्ञान कर्म सन्यास योग"



    इस अध्याय को ज्ञान कर्म सन्यास योग (Gyana Karma Sanyasa Yoga) नाम से जाना जाता है ।

    इस अध्याय में भगवान् के प्रभाव और कर्मयोग का वर्णन है ।

    योगी और महात्मा पुरुषों के लक्षण तथा उनकी महिमा का वर्णन । कर्म और अकर्म का वर्णन, साथ ही ज्ञान की महिमा का भी वर्णन किया गया है ।


    पंचम अध्याय - "कर्मसन्यास योग"


    इस अध्याय को कर्मसन्यास योग ( Karma Sanyasa Yoga ) नाम से जाना जाता है ।

    इसमें सांख्ययोगी और कर्मयोगी पुरुष के लक्षणों का वर्णन है ।

    इस अध्याय में ज्ञान, भक्ति, ध्यान एवं योग जैसे महत्वपूर्ण विषयो की तुलना की गई है और हर विषयों से अलग - अलग मुक्ति मार्ग बताये गए हैं।



    छठा अध्याय - "आत्मसंयम योग"


    इस अध्याय को आत्मसंयम योग (Aatmsanyam Yoga) नाम से जाना जाता है ।

    यह अध्याय आत्म कल्याण के लिए प्रेरित करता है एवं साथ ही विस्तर से धायनयोग और मन के निग्रह जैसे विषयों के बारे में बताया गया है । 


    भगवत प्राप्त पुरुष के विशेषता बताये गए है और कैसे योगभ्रष्ट व्यक्ति स्वयं को ध्यानयोग की महिमा से पूर्ण क्र सकता है ?



    सातवाँ अध्याय - ज्ञानविज्ञान योग



    इस अध्याय को ज्ञान विज्ञानं योग (Gyana Vigyana Yoga) नाम से जाना जाता है ।

    इसमें सम्पूर्ण पदार्थ के मूल कारण एवं उनके स्वभावों का व्यापक वर्णन किया गया है ।

    देवताओं की उपासना, प्रभाव और भक्तों के स्वरूप आदि का वर्णन किया गया है।


    अठवा अध्याय - "अक्षर ब्रह्म योग"


    इस अध्याय को अक्षर ब्रह्म योग (Akshar Brahma Yoga) नाम से जाना जाता है।

    जिसमे अर्जुन के 7 प्रश्न जिनका संबंध ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म और भक्ति जैसे विषयों से है । 

    साथ ही इस अध्याय शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विस्तार से वर्णन किया गया है ।



    नवम अध्याय - "राज विद्या राज गुरुः योग"


    इस अध्याय को राज विद्या राज गुरुः ( Rajavidyarajaguhya Yoga )योग नाम से जाना जाता है ।

    इसमें संसार की उत्पति, मनुष्य की प्रवृत्ति जैसे विषयों का वर्णन किया गया है। कर्मफल और उसके प्रभाव को बताया गया है ।


    दशवा अध्याय - "विभूति योग"



    इस अध्याय को विभूति योग ( Vibhutooti Yoga )नाम से जाना जाता है । 

    अर्जन के प्राथना करने पर इसमें भगवान् कृष्ण अपने विभूतियों और योग शक्ति का ज्ञान अर्जुन को दिया है ।


    ग्यारहवा अध्याय - "विश्वरूप दर्शन योग"


    इस अध्याय को विश्वरूप दर्शन योग (Vishwaroop Darshana Yoga) नाम से जाना जाता है ।

    इस अध्याय में अर्जुन की विनती करने पर भगवान् श्री कृष्ण ने अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिए है।

    साथ ही भयभीत अर्जुन को युद्ध के लिए प्रोत्साहित किये है।

    श्रीकृष्ण भगवान् ने अपने विश्वरूप, चतुर्भुज रूप और सौम्यरूप का दर्शन दिए है।

    और उनसे होने वाले लाभ एवं उस मार्ग को प्राप्त करने का वर्णन किया ।


    बारवाह अध्याय - "भक्तियोग"


    इस अध्याय को भक्तियोग (Bhakti Yoga) नाम से जाना जाता है।

    इस अध्याय में साकार और निराकार भ्रम के बारे में विस्तार से बताया गया है एवं भगवान् को प्राप्त करने के उपाय बताए गए हैं ।


    तैरवाह अध्याय - "क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग"


    इस अध्याय को क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग नाम से जाना जाता है । इस अध्याय में क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज् (शरीर के बारे में जानने वाले) ज्ञानी के बारे में बताया गया है ।


    पाँच महाभूत, सुख - दुःख, चेतना एवं भावों के बारे में बताया गया है ।

    इस अध्याय में जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझाया गया है ।


    चौदहवाँ अध्याय - " गुणत्रय विभाग योग "



    इस अध्याय को गुणत्रय विभाग योग के नाम से जाना जाता है ।  इस अध्याय में गुण से युक्त भक्त की प्रवृति को बताया गया है । 

    सत्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण के बारे में विस्तार से बताया गया है, साथ ही यह भी बताया गया है की मनुष्य इन तीनों गुणों से कैसे मुक्त हो सकता है ।



    पन्द्रहवाँ अध्याय - "पुरुसोत्तम योग"


    इस अध्याय को पुरुषोत्तम योग नाम से जाना जाता है । इसमें संसार वृक्ष का व्याख्या किया गया है । 


    साथ ही इस में जीवात्मा, परमेश्वर के स्वरूप एवं पुरुषोत्तम जैसे गहन विषयों को समझाया गया है ।



    सोलहवाँ अध्याय - "देव-असुर सम्पदा योग"


    इस अध्याय को देवसूरसंपद्विभाग योग नाम से जाना जाता है । इसमें दैवी गुण एवं आसुरी गुण से युक्त व्यक्तियों का वर्णन किया गया है ।

    आसुरी सम्पदा से होने वाले अधोगति का वर्णन किया गया है । साथ ही शास्त्र विपरीत आचरणों को त्याग ने के लिए एवं शास्त्र अनुकूल आचरणों के लिए प्रेऱणा दी गई है ।


    सत्रहवाँ अध्याय - "श्रद्धात्रय विभाग योग"


    इस अध्याय को श्रद्धात्रय विभाग योग के नाम से जाना जाता है ।

    इसमें श्रद्धा (स्वभाव) से उत्पन्न एवं शास्त्र के विपरीत आचरण करने वाले व्यक्तियों के प्रकार का वर्णन किया गया है । 

    साथ ही आहार, यज्ञ, तप और दान के अलग - अलग भेदों का वर्णन किया गया है ।


    "ॐ तत सत" की महत्ता को बताया गया है ।


    अठाहरवाँ अध्याय - "मोक्ष-सन्यास योग"


    इस अध्याय को मोक्ष - सन्यास योग नाम से जाना जाता है।

    इस अध्याय में मोक्ष एवं सन्यास से जुड़े हर विषयों का वर्णन किया गया है ।


    जैसे - फलसहित वर्णधर्म, गुण अनुसार ज्ञान, कर्म, बुद्धि और सुख को पृथक पृथक समझाया गया है। 


    साथ ही ज्ञाननिष्ठा, भक्तिसहित कर्म योग और त्याग जैसे गहन विषयों का चर्चा किया गया है और मोक्ष के मार्ग को बताया गया है ।


    "श्रीमद भगवद गीता" के महत्ता को बताया गया है ।


    संतो या गुरुओं का मार्ग दर्शन क्यों आवश्यक है ?


    भगवद गीता को आप  गुरुओं (ज्ञानियों) द्वारा समझने का प्रयास करें।  गुरू के द्वारा समझना काफी सरल होता है। 

    गुरू भी वैसे जिन्होंने वास्तव में इसे समझा हो। आज हम कुछ प्रमुख गुरुओं (मैं इनको पढ़ा और सुना हूँ।)जिन्होंने अपना सर्वस्व मानव कल्याण के लिए  समर्पित किया है।

    उनके द्वारा लिखी पुस्तकों के माध्यम से गीता को  समझने का प्रयास करेंगे। 

    श्री श्रीमद ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी : 

    जिन्होंने अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की ।

    इन्होंने पश्चिम के देशों को भी कृष्णमय कर दिया । इनके द्वारा लिखी पुस्तक श्रीमद्‍भगवद्‍गीता यथारूप है ।

    जिसे पढ़कर बहुत से लोगों ने अपने जीवन का कल्याण किया ।

    यदि आप इनके द्वारा लिखी पुस्तक श्रीमद्‍भगवद्‍गीता यथारूप को पढ़ेंगे तो आप श्रीकृष्णा की विराटता को समझने में अग्रसर होंगे।

    साथ ही  आप श्रीकृष्ण के प्रति कैसे पूर्ण समर्पित हो सकते है, ये भी उन्होंने  बताया है।

    Book written by Prabhu Jee


    2  श्री अड़गड़ानंद जी :

    ऐसे ही एक महान संत श्री परमहंस महाराज और उनके शिष्य श्री अड़गड़ानंद जी है। 

    उन्होंने यथार्थ गीता नाम की पुस्तक लिखी है । जिसमें उन्होंने बहुत ही सरल भाषा में भगवद्‍गीता को समझाया है।  

    यदि आप इनके द्वारा लिखी पुस्तक यथार्थ गीता को पढ़ेंगे तो आप अपने अंदर चलने वाले महाभारत को  समझने में सफल होंगे।

    अब आप सोच रहे होंगे अंदर कौन सी महाभारत चल रही है। अंदर कौन का सत्रु है ? क्रोध, लोभ , मोह ,माया आदि हमारे अंदर का सत्रु है। 

    श्री अड़गड़ानंद जी बहुत ही सरल शब्दों में अंदर के महाभारत को समझाया है। 
    Book Writtten by Maharaj Jee


    कहा जाता है समय का साथ चलना मतलब श्रीकृष्णा के साथ चलना है।

    वर्तमान दौर में भगवद गीता को को कैसे समझा जाय और यह कैसे आपके  जीवन को सार्थक बना सकेगा। 

    यह हम आचार्य जी द्वारा लिखी पुस्तक भगवद  गीता - वॉल्यूम  १ से समझने का प्रयास करेंगे। 

    Book written by Acharya Jee


    !!जय श्री कृष्ण!!

    आप का दिन

    मंगलमय हो!


    बाहरी कड़ियाँ:-




    संदर्भ (References)


    श्रीमद्‍भगवद्‍गीता का प्रसार का श्रेय संतों को जाता है । जिनमें से एक महान संत श्री हनुमान प्रसाद पोददार जी है , जिन्होंने गीता प्रेस को स्थापित किया ।


    गीता प्रेस ऐसी संस्था है जो बहुत ही कम ( लगभग न के बराबर ) मूल्यों पर लोगों को धार्मिक पुस्तक उपलब्ध कराती है ।


    ऐसे ही एक और महान संत श्री श्रीमद ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी है। 


    जिन्होंने अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की । इन्होंने पश्चिम के देशों को भी कृष्णमय कर दिया ।


     इनके द्वारा लिखी पुस्तक श्रीमद्‍भगवद्‍गीता यथारूप है । जिसे पढ़कर बहुत से लोगों ने अपने जीवन का कल्याण किया ।


    ऐसे ही एक महान संत श्री परमहंस महाराज और उनके शिष्य श्री अड़गड़ानंद जी है।


    उन्होंने यथार्थ गीता नाम की पुस्तक लिखी है । जिसमें उन्होंने बहुत ही सरल भाषा में भगवद्‍गीता को समझाया है ।


    ऑनलाइन की दुनिया में सर्वप्रथम भगवद्‍गीता के सभी अध्यायों को लिखने का श्रेय हिंदी साहित्य मार्गदर्शन के संस्थापक निशीथ रंजन को जाता है ।


    Video Star plus के Mahabharat Serial से लिया गया है और voice youtube channel Divine Bansuri से लिया गया है ।

    राधे-राधे 🙏🙏🙏🙏🙏

     

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