नरकासुर का वध (Krihsna - Narakasur)
यह कथा महाभारत और भागवत पुराण से लिया गया है। यह घटना स्वर्ण युग में हुआ था। उस समय हिरण्याक्ष नाम का एक असुर था। उसने पृथ्वी को अपने अधीन करके समुद्र में डुबो दिया ।
पृथ्वी की रक्षा करने के लिए, भगवान विष्णु ने जंगली सूअर (वराह) का रूप धारण किया। हिरण्याक्ष और वराह के बीच भीषण युद्ध हुआ।
Krishna Story Narkasur Ka vadh
जिस युद्ध में वराह ने हिरण्याक्ष को परास्त कर दिया। पृथ्वी को उसके चंगुल से आजाद कर ब्रह्मांड में उसकी मूल स्थिति में बहाल कर दिया।
इस दोनों के बीच भीषण युद्ध के दौरान, भगवान वराह के शरीर से पसीने की एक बूंद जमीन पर गिरी। उनकी इस पसीने से एक युवा योद्धा उत्पन्न हुआ। जिसका नाम नरक पड़ा।
धरती माता ने अपने इस पुत्र को पाकर काफी प्रसन्न हुई और भगवान वराह से कहा कि उसका पुत्र अजेय हो ।
भगवान वराह ने अपना एक दांत निकाल कर नरक को दिया और कहा - जब भी तुम मुसीबत में परो तो इस दाँत को हतियार के रूप में उपयोग कर सकते हो।
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और इस शक्तियों का उपयोग केवल अच्छा काम करने के लिए करना। नरक अपने शक्ति को आजमाने की निकल पड़ा।
धरती माता ने अपने पुत्र के लिए प्रशंसा व्यक्त करते हुए कहा, "मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेरा पुत्र तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली योद्धा बनेगा ।"
भगवान वराह ने कहा शक्तिशाली तो वो निश्चित ही होगा। लेकिन ध्यान देने की बात यह है की क्या वह धर्म का पालन करेगा ?
क्योंकि धर्म का पालन ही श्रेष्ठ बनता है। समय के साथ-साथ नरक का लोभ और महत्वाकांक्षा बढ़ता गया। स्वर्ण युग से त्रेता और त्रेता से द्वापर युग आगया।
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Source :chinnajeeyar.org |
नरक काफी शक्तिशाली हो गया था। उसने पृथ्वी और स्वर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था।
शक्ति के अभिमान में, उसने देवताओं की माता अदिति के दिव्य कान के छल्ले भी छीन लिए। चारों तरफ आतंक फैलाने लगा।
Krishna Story in Hindi
तब इन्द्र परेशान होकर भगवान श्री विष्णु के पास पहुँचे। त्राहिमाम - त्राहिमाम करते हुए भगवान से कहा की - हे भगवान इस दुस्ट नरक के आतंक से पृथ्वी तथा स्वर्ग को मुक्त करा दें।
द्वापर युग में, भगवान विष्णु ही श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए। साथ ही माता भूदेवी सत्यभामा के रूप में श्री कृष्ण की धर्मपत्नी बानी।
माता सत्यभामा नरका के कुकर्मों के बारे में सुनकर काफी परेशान हो गई। उन्होंने कृष्ण से कहा नरक को दंड देने केलिए।
तभी नरक प्राग-ज्योतिष-पुर या उगते सूरज की भूमि में अपने अभेद्य किले से ही तीनों लोको पर शासन करता था। उस किले का मुख्य रक्षक मुरा था।
श्रीकृष्ण, माता सत्यभामा के साथ अपने वाहन गरुड़ पर सवार हुए और प्राग-ज्योतिष-पुर की ओर चल परे। किले के मुख्य द्वार पर मुरा मिला। श्रीकृष्ण का मुरा के साथ युद्ध हुआ।
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इस युद्ध में मुरा मारा गया। मुरा को मारने के कारण ही कृष्ण का एक नाम मुरारी भी है।
मुरा के वध के पश्चात किले से नरक निकला। उन दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में नरक ने अपनी हतियार निकली जो भगवान वराह से उसे प्राप्त हुआ था।
उसने उस हतियार से श्रीकृष्ण पर हमला कर दिया। थोड़ी देर के लिए श्रीकृष्ण मूर्क्षित हो गए। तब माता सत्यभामा ने युद्ध जारी रखा नरक के साथ।
तब तक श्री कृष्ण भी मूर्क्षा से उठे। श्रीकृष्ण को उठा देख नरक समझ गया ये कोई और नहीं पिता वराह ही है।
तब भगवान वराह के शब्द उनके कानों में गूँजने लगे -अपनी शक्तियों का प्रयोग केवल धर्म की रक्षा करने के लिए करना।
लेकिन नरक यह करने में विफल रहा। अंत समय में वह माता सत्यभामा और पिता कृष्ण को हाथ जोड़ा।
भगवान कृष्ण अपने सुदर्शन से प्रहार कर उसे सुन्दर दर्शन यानि अपने परधाम दिया।
Source & Reference
Website: Kathakids.com
image: chinnajeeyar.org
Brief Story about Narakasur : Narakasur Wiki
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